बैंकों ने लोगों की सेवा करने के बजाए उनका शोषण करना शुरू कर दिया है

बैंकों ने लोगों की सेवा करने के बजाए उनका शोषण करना शुरू कर दिया है

बैंक लोक कल्याण से भटक कर व्यावसायिक कल्याण के मार्ग पर चले गए हैं, उन्होंने लोगों की सेवा करने के बजाए उनका शोषण करना शुरू कर दिया है, वे कॉर्पोरेट को दिये ऋणों से हुए नुकसान की वसूली आम लोगों से बैंक चार्जेस के माध्यम से करने लगे हैं। वे…